नमस्कार दोस्तो , आज की हमारी इस पोस्ट में हम आपको भारतीय संबिधान के मूल कर्तव्य ( Fundamental Duties of Indian Constitution ) के संबंध में Full Detail में बताऐंगे , जो कि आपको सभी आने बाले Competitive Exams के लिये महत्वपूर्ण होगी ! पोस्ट के अंत में आपको Fundamental Duties of Indian Constitution से संबंधित महत्वपूर्ण Question and Answer को उपलब्ध कराएंगे, जो कि पिछली प्रतियोगी परीक्षाओं में पुंछे जा चुके हैं व आंगे आने वाली सभी Competitive Exams के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं |
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भारतीय संबिधान के मूल कर्तव्य ( Fundamental Duties of Indian Constitution )
भारत के संविधान में मूल अधिकारों के साथ मूल कर्तव्यों ( मौलिक कर्तव्यों ) को भी शामिल किया गया है। वस्तुत: अधिकार और कर्तव्य एक-दूसरे के पूरक हैं। अधिकार विहीन कर्तव्य निरर्थक होते हैं जबकि कर्तव्य विहीन अधिकार निरंकुशता पैदा करते हैं।
यदि व्यक्ति को ‘गरिमापूर्ण जीवन’ का अधिकार प्राप्त है तो उसका कर्तव्य बनता है कि वह अन्य व्यक्तियों के गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार का भी ख्याल रखे। यदि व्यक्ति को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ प्यारी है तो यह भी जरूरी है कि उसमें दूसरों की ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के प्रति धैर्य और सहिष्णुता विद्यमान हो ।
रोचक बात यह है कि विश्व के अधिकांश लोकतांत्रिक देशों के संविधान में नागरिकों के कर्तव्यों का उल्लेख नहीं किया गया है, उनमें केवल मूल अधिकारों की घोषणा की गई है, जैसे अमेरिका संविधान। कुछ साम्यवादी देशों में मूल कर्तव्यों की घोषण की परंपरा दिखाई पड़ती है। भूतपूर्व सोवियत संघ का उदाहरण इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है। भारतीय संविधान में उल्लिखित मूल कर्तव्य भूतपूर्व सोवियत संघ के संविधान से ही प्रभावित हैं।
भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों का इतिहास ( History of fundamental duties in Indian Constitution )
(History of fundamental duties in Indian Constitution)
भारतीय संविधान में भी प्रारंभ में मूल कर्तव्य शामिल नहीं थे , इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में 1975 में आपातकाल की घोषणा की गई थी , तभी सरदार स्वर्ण सिंह के नेतृत्व में संविधान में उपयुक्त संशोधन सुझाने के लिये एक समिति का गठन किया गया था। इस समिति में यह सुझाव दिया कि संविधान में मूल अधिकारों के साथ-साथ मूल कर्तव्यों का समावेश होना चाहिए। समिति का तर्क यह था कि भारत में अधिकांश लोग अधिकारों पर बल देते हैं, यह नहीं समझते कि हर अधिकार किसी न किसी कर्तव्य के सापेक्ष होता है।
स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसाओं के आधार पर ‘42वें संशोधन अधिनियम 1976’ के द्वारा संविधान के भाग-4 के पश्चात् भाग – 4क अंत:स्थापित किया गया और उसके भीतर अनुच्छेद 51क को रखते हुए 10 मूल कर्तव्यों की सूची प्रस्तुत की गई। आगे चलकर ‘86वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002’ के माध्यम से एक और मूल कर्तव्य जोड़ा गया। जिसके तहत 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के माता-पिता और संरक्षकों पर यह कर्तव्य आरोपित किया गया है कि वे अपने बच्चे अथवा प्रतिपाल्य को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करेंगे।
11 मूल कर्तव्यों की सूची ( List of 11 Fundamental duties )
वर्तमान में संविधान के भाग 4क तथा अनुच्छेद-51क के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक के कुल 11 मूल कर्तव्य हैं। इसके अनुसार, भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह-
- संविधान का पालन करे , और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।
- स्वतंत्रता के लिये हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्दय में संजोए रखे पालन करें।
- भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।
- देश की रक्षा करें और आवाहन किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरूद्ध हैं।
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करें।
- प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका सवर्द्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न से उपलब्धि की नई ऊॅचाइयों को छू ले।
- जो माता-पिता या संरक्षक हों, वह छ: से चौदह वर्ष के बीच की आयु के यथास्थिति, अपने बच्चे अथवा प्रतिपाल्य को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्रदान करेगा।
86वाँ संविधान संशोधन – 86th Constitutional Amendment
भारत के संविधान में वर्ष 2002 में 86वाँ संविधान संशोधन करके शिक्षा के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 51क में संशोधन करके (ञ) के बाद नया अनुच्छेद (ट) जोड़ा गया है, “इसमें 6 साल से 14 साल तक की आयु के बच्चे के माता-पिता या अभिभावक अथवा संरक्षक को अपने बच्चे अथवा प्रतिपाल्य को शिक्षा दिलाने के लिये अवसर उपलब्ध कराने का प्रावधान है।”
मूल कर्तव्यों को प्रभावी बनाने के उपाय
भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायधीश श्री जे.एस. वर्मा की अध्यक्षता में मूल कर्तर्व्यो के प्रचालन पर विचार करने के लिये एक समिति गठित की थी। इस समिति में 1999 में प्रस्तुत की गई अपनी रिपोर्ट में मूल कर्तव्यों को प्रभावी बनाने के लिये कुछ सुझाव दिये, जिनमें प्रमुख है-
- 3 जनवरी को ‘मूल कर्तव्य दिवस’ घोषित किया जाए। 3 जनवरी की तिथि इसलिये चुनी गई थी क्योंकि इसी दिन से 42वॉं संविधान संशोधन अधिनियम 1976 लागू हुआ था। जिसमें मूल कर्तव्य भी थे।
- मूल कर्तव्यों को विद्यालयों के पाठ्यक्रम तथा अध्यापकों के प्रशिक्षण पाठ्क्रम में शामिल किया जाय।
- सभी शासकीय कार्यलयों में तथा सार्वजनिक स्थानों पर बोर्ड विज्ञापन आदि के माध्यम से मूल कर्तव्यों को ज्यादा से ज्यादा प्रस्तुत किया जाना चाहिए ताकि लोगों को उनसे परिचित होने का मौका मिलना चाहिए ।
- मीडिया का लगातार ऐसे संदेश तथा कार्यक्रम प्रस्तुत करने चाहिए जिनसे मूल कर्तव्यों के संबंध में जागृति तथा चेतना प्रसार हो।
- मीडिया को ऐसे दृश्य दिखाने से परहेज करना चाहिये जो जनता को उत्तेजित करते हों और उससे मूल कर्तव्यों से विचलित करते हों।
वर्मा समिति का सुझाव यह भी था कि मूल कर्तव्यों की प्रवर्तनीयता पर बल दिया जाना चाहिए। इसके बाद भी, सही बात यही है कि किसी देश की राजनीति का संस्कृति में परवर्तन करने के लिए सिर्फ सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं होते। तथ्य यही है कि जब तक देश के लोगों में राजनीतिक जागरूकता तथा कर्तव्य निर्वाह की चेतना विकसित न हो, तब तक मूल कर्तव्यों को लागू करने का उद्देश्य पूर्ण नहीं होगा।
मूल कर्तव्यों की प्रवर्तनीयता ( Enforceability of fundamental duties )
सामान्य धारणा यह है कि मूल कर्तव्य न्यायालयों के माध्यम से प्रवृत्त नहीं कराए जा सकते हैं अर्थात् यदि कोई नागरिक अपने मूल कर्तव्य का पालन न करे तो न्यायालय द्वारा नागरिक को दंडित नहीं किया जा सकता है। इस दृष्टि से मूल कर्तव्य भी राज्य के नीति के निदेशक तत्वों की तरह हैं। जिस तरह से राज्य को न्यायालय में इस बात के लिये प्रश्नगत नहीं किया जा सकता है कि वह नीति-निदेशक तत्वों का पालन नहीं कर रहा है, वैसे ही कि किसी नागरिक को इस बात कि लिये बाध्य या दंडित नहीं किया जा सकता कि वह अपने कर्तव्यों का पालन कर रहा है। इसी आधार पर विद्वानों ने व्यंग्य करते हुए कहा है कि ‘’मूल कर्तव्य निरर्थक घोषणाऍ मात्र हैं।‘’
किन्तु वास्तविक स्थिति ऐसी नहीं है। यदि अनुच्छेद 37 तथा अनुच्छेद 51क में तुलना करें तो साफ दिखाई देता है कि जहॉ अनुच्छेद 37 में नीति निदेशक तत्वों के अप्रवर्तनीय होने कि बात साफ तौर पर कही गई है, वहीं अनुच्छेद 51क में ऐसी कोई बात वर्णित नहीं है। न्यायमूर्ति श्री वेंकटचेलैया ने एक मामले में यह सपष्टीकरण देते हुए बताया है कि संविधान यदि मूल कर्तव्यों को प्रवर्तनीय घोषित नहीं करता है तो वह उन्हें अप्रवर्तनीय भी घोषित नहीं करता है। इसके अलावा, न्यायालय ने कुछ मामलों में स्पष्ट किया है कि जिस तरह मूल अधिकार, संविधान को समझने के लिये मूलभूत महत्व के हैं, वैसे ही मूल कर्तव्य भी। मूल और कर्तव्य दोनों शब्द इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है, इसलिए जहां कही भी संविधान की व्याख्या करने का प्रश्न उपस्थित होगा, न्यायालय मूल कर्तव्यों को भी एक महत्वपूर्ण संदर्भ के रूप में प्रयुक्त करेंगे। न्यायालय स्वयं भी कोई आदेश पारित करते हुए ध्यान रखेंगे कि उनका कोई आदेश अनुच्छेद 51क में दिए गए कर्तव्यों के विरूद्ध न हो।
Fundamental Duties – परिक्षापयोगी महत्वपूर्ण तथ्य
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51क में मूल कर्तव्य शामिल है।
- भारतीय संविधान के भाग 4क में मूल कर्तव्यों का वर्णन है।
- भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों को भूतपूर्व सोवियत संघ के संविधान से लिया गया है।
- संविधान में मूल कर्तव्यों से संबंधित प्रावधान स्वर्ण सिंह समिति की संस्तुतियों के आधार पर किया गया है।
- मूल कर्तव्यों को 42वें संविधान संशोधन के द्वारा 1976 में शामिल किया गया ।
- 86 वें संविधान संशोधन 2002 के माध्यम से 11वें मूल कर्तव्य को जोड़ा गया।
- संविधान में उल्लिखित मूल कर्तव्य केवल भारत के नागरिकों के लिये हैं।
Fundamental Duties Questions and Answers in Hindi
- संविधान में मूल कर्तव्य से सम्बन्धित प्रावधान किस समिति की संस्तुतियों के आधार पर सम्मिलित किया गया है ? – स्वर्ण सिंह समिति की
- किस वर्ष संविधान में मूल कर्तव्यों को अन्तःस्थापित किया गया ? – 1976 ई.
- मौलिक कर्तव्यों को निर्धारित किया गया – 42वें संविधान संशोधन द्वारा
- 42वें संविधान संशोधन के 10 आचार आदर्शों को किस नाम से जाना जाता है ? – मौलिक कर्तव्य
- 1976 में 42वें संशोधन द्वारा संविधान में नागरिकों के लिए कितने मौलिक कर्तव्य निश्चित किये गए ? –10
- संविधान के किस भाग में मूल कर्तव्यों के अध्याय को जोड़ा गया है ? –भाग IV क
- भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों की सूची किस भाग के रूप में जोड़ी गई थी ? – चार
- वर्तमान में संविधान में कुल कितने मूल कर्तव्यों का उल्लेख है ? – 11
- किस संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में मूल कर्तव्यों को सम्मिलित किया गया है ? – 42वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1976
- संविधान में उल्लिखित मौलिक कर्तव्य किसके लिए हैं ? – सभी नागरिकों के लिए
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