एक छात्र जो असफल हुआ है, इसका अर्थ है वह किसी परीक्षा में बैठा है, इसका अर्थ है कि उसने कोई लक्ष्य तो बनाया हैं। कम-से-कम वह उन छात्रों से तो श्रेष्ठ है जिन्होंने बिना कोई परीक्षा दिए ही हार मान ली। परीक्षा देने वाला छात्र चाहे असफल हो गया लेकिन वह हर उस छात्र से अधिक आत्मविश्वास रखता है, अधिक योग्यता, क्षमता रखता हैं, अधिक जागृत जीवन्त है जो उस परीक्षा को देने की हिम्मत ही न जुटा सके। कहते हैं —-
” गिरते है शहसवार ही मैदाने जंग मे,
वे तिफ्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलें “
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असफलता अभिशाप नहीं है। हर सफलता के पीछे कई असफलताओं से प्राप्त शिक्षा, सीख होती हैं। असफलता को सफलता के मार्ग में कभी बाधक न समझें। यदि वर्तमान असफलता से कुछ सीख सकते हैं तो जीवन में बहुत बड़ी-बड़ी सफलताएं आपका इन्तजार कर रही हैं।
असफलता को अपना मार्गदर्शक बनाएं
आप किसी भी परीक्षा से असफल हुए हैं तो अपनी असफलता के कारणों को जानने का प्रयास करें। आप पूर्ण ईमानदारी और धैर्य से अपनी असफलता के लिए जिम्मेदार हर छोटे-बड़े कारण का आकलन करें।
पूर्ण ईमानदारी का अर्थ
आप पूर्वाग्रह रहित होकर अपनी कमजोरियों एवं कमियों को पहचानें, जानें। स्वयं के प्रति ईमानदार रहें। स्वयं से झूठ न बोलें। स्वयं को भ्रमित न करें।
धैय का अर्थ
बहुत सोच-समझकर अपनी असफलता हेतू जिम्मेदार विभिन्न घटकों पर विचार करें। सबसे अह्रम बिन्दु यही है कि आज यह जान सकें कि आपसे कहां चूक हुई। कहीं आपकी तैयारी में कमी थी या आप तनाव में थे, या आपने परीक्षा देते समय कोई गलती कर दी या अन्य कोई कारण।
एक-एक कारण की स्वयं समीक्षा करें
हर कारण घटक को जानने के बाद सोचें कि क्या आप इन कारणों को दूर कर सकने की स्थिति में हैं।
भाग्य या दुर्भाग्य को असफलता हेतु जिम्मेदार ठहराने का प्रयास न करें।
यदि कुछ कारण ऐसे हैं जिनका उपाय आपके बस में नहीं हैं तो आपको अपने अभिभावकों या किसी अच्छे मित्र या किसी मनोचिकित्सक की राय लेनी चाहिए।
देखा जाता है कि छात्र स्वयं अपनी समस्याओं एवं परेशानियों से जूझते रहते हैं। वे अभिभावकों से राय नहीं लेना चाहते हैं। वे सोचते है कि अभिभावक क्या समझते हैं ? , वे क्या कर सकते हैं ? यह सच हो सकता है कि आपकी शैक्षिक समस्याओं के सम्बन्ध में शायद अभिभावक कुछ न कर सकें लेकिन उनका अनुभव आपसे बहुत अधिक हैं। उन्होंने भी अपनी उम्र में बहुत-सी समस्याओं का सामना किया है, उनका कोई मित्र, परिचित आपके काम आ सकता हैं। कम-से-कम आपको उनकी राय से कोई हानि तो नहीं हो सकती हैं।
असफलता ही आपकी सफलता की कुँजी हैं
अपनी सफलता के कारणों का आकलन करने के बाद, आप पूर्ण आत्मविश्वास एवं दृढ़तापूर्वक, पुन: तैयारी करें। न निराश होने की आवश्यकता है, न ही यह सोचने की आवश्यकता है कि फिर हो गया तो क्या होगा? इसका सीधा-सा जवाब है कि जब ऐसा होगा तो सोचेंगे। आज ऐसा सोचने का कोई औचित्य नहीं हैं !
अधिकांश व्यक्तियों के तनाव का कारण भविष्य की बुरी आशंकाओं की कल्पना हैं। ऐसी कल्पनाएं जो कभी घटित ही नहीं होती हैं। आप इस बार असफल हुए तो क्या हो गया। आपका यह निर्णय कि मुझे पुन: प्रयास करूँ तो असफलता मिल सकती हैं, तभी तो आप प्रयास हेतु तैयार हुए हैं। और जब आपमें यह आत्मविश्वास है तो पूरे संकल्प एवं लगन से जुट जाएं सफलता क्यों नहीं मिलेगी? कोई आशंका मन में न लाएं। हर सफल व्यक्ति कितनी ही बार असफल होता हैं, फिर आप निराश क्यों हो रहे हैं। आशा, आत्मविश्वास, दृढ़-संकल्प, कड़ी मेहनत के साथ अपनी कमियों/कमजोरियों का सच्चा आकलन कर उनका परिर्माजन करने से हर असम्भव कार्य सम्भव होता हैं।
” असफलता सफलता की पहली सीढ़ी है “
यह एक ऐसी बीमारी है, जिससे क्या छात्र, क्या अभिभावक, सभी त्रस्त रहते हैं। मैं फेल हो गया तो लोग क्या कहेंगे ? मेरा बेटा फेल हो गया तो लेाग क्या कहेंगे ? अधिकांश छात्र/अभिभावक इन्हीं उलझनों से तनावग्रस्त रहेते हैं। जो कहेंगे, कहने दो। वे आपकी असफलता को तो सफलता में बदल नहीं सकते। वैसे भी लेाग तो कहते ही है, चाहे आप सफल हों या असफलत। हर व्यक्ति का अपना सोचने का ढंग होता हैं। आप सफल हो गए तो कहेगें, उसे कितना घमण्ड हो गया है। फेल हो गए तो कहेंगे, हम तो पहले ही जानते थे, पास होना इतना आसान है क्या? स्वयं को बहुत इन्टेलीजेन्ट समझता था।
वैसे भी लोगों को दूसरों पर कुछ-न-कुछ टिप्पणी करने में मजा आता है। कोई सकारात्मक ढंग से सोचता है तो कोई नकारात्मक ढंग से। प्रश्न है कि आप यह सोचकर क्यों परेशान है कि लोग क्या कहेंगे?
मुख्य बात यही है कि आप अपने लक्ष्य को हासिल करने हेतु प्रयासरत रहें। पूरी र्इमानदारी, लगन एवं निष्ठा से अपन कर्तव्य का पालन करें। आपको सफल होना हैं, चाहे कोई कुछ भी कहे। सफल होने के बाद, सब कुछ सुहावना लगता हैं। आपके समक्ष सब अच्छा ही बोलते हैं, पीछे चाहे कोई कुछ भी कहता रहें।
नकारात्मक सोच के व्यक्तियों से हमेशा दूर रहें
आपको जीवन में, अपने आस-पास ऐसे बहुत-से मित्र, रिश्तेदार, व्यक्ति मिल जाएंगे, जो आपको आगे बढ़ने से रोकने में बहुत अह्रम भूमिका निभा सकते हैा।
जिनकी सोच हमेशा, आत्महीनता, निराशावादी एवं भाग्यवादी भरी होती है वे स्वयं तो जीवन में किसी उच्च मुकाम पर पहुँच नहीं सके और न ही चाहते है कि आप कुछ ऊँचा सोचें या ऊँचा करने की इच्छा रखे।
इस तरह की सोच, एक निराशावादी दृष्टिकोण, आत्मविश्वास की कमी एवं दूसरों की क्षमता के नकारात्मक आकलन को व्यक्त करती है। ऐसे व्यक्तियों से हमेशा दूर रहें।
तो दोस्तो में नितिन गुप्ता आप सभी को आने बाली आपकी सफ़लता के लिये अभी से बधाई देता हूं अपने लक्ष्य का निर्धारण अपनी क्षमता एवं योग्यता के सन्दर्भ में करें। एक बार तय कर लिया तो फिर डटकर मेहनत करें एवं ” दुनिया को दिखा दें कि उनकी सोच कितनी संकीर्ण एवं नकारात्मक थी। “
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Dhanyawad bhai aapko itna sundar aour saral tarike se aapne motivate kiya ,bahut hi achha laga .aapko safalta mile aisi meri shubhkamna h.
Thank You Dost